Sunday, June 15, 2014

PROF (DR) BALRAM MISHRA EVOM UNKI ANUPAM SAHITYIK KRITI KA ADBHUT ANUBHAV

डॉ बलराम मिश्र 
एवं 
उनकी अनुपम साहित्यिक कृति 
का 
अद्भुत अनुभव 


प्रो. (डॉ ) बलराम मिश्र 



१.  हिंदी व्याकरण : समस्या और समाधान 
     प्रकाशन वर्ष :१९८२ 


लेखक के अनुसार  इस पुस्तक का उद्देश्य व्याकरण सम्बन्धी छात्रों के सम्मुख उपस्थित समस्याओं के समाधान का प्रयास है। छात्रों के सम्मुख व्याकरण को समझना महासंकट है।  लिंग व्यवस्था , शब्दों  वाक्यों के असंख्य भेद, कारक के 'ने ' चिन्ह के प्रयोग के उलझन आदि छात्रों के लिए संकट हैं।  सरल व्याकरण के स्थान पर वृहद व्याकरणों की रचना होने लगी है।  फलतः छात्र परीक्षा में उत्तीर्ण  होने के पश्चात्  पुनः व्याकरण की ओर ताकते भी नहीं। इस पुस्तक में विश्वभाषा में हिंदी का स्थान, उसका संबंध  सरल तथा संक्षिप्त रूप में समझाया गया है। सरलता ही इसकी महत्ता है। यह पुस्तक छात्रोपयोगी ही नहीं चिंतकों के लिए उपयोगी भी है। 



२. गोपाल सिंह 'नेपाली' : जीवन और साहित्य 
    प्रकाशन वर्ष : १९८३ 

उत्तर छायावादी कवि-गीतकार गोपाल सिंह 'नेपाली' उत्तर छायावादी कवियों में महत्वपूर्ण स्थान के अधिकारी हैं। आचार्य जानकीवल्लभ शास्त्री , दिनकर, श्यामनंदन किशोर, नीरज जैसे गीतकारों में नेपाली का स्थान विशिष्ट है।  उन्हें गीतों के राजकुमार, अलक्षित राष्ट्रकवि, वनमैन आर्मी  कहा जाता है।  चीनी आक्रमण के समय वे भारत के जान मानस में राष्ट्रीय भावना  भरने के लिए अकेले निकल पड़े , यह कहते हुए -" चालीस करोड़ों को हिमालय ने पुकारा ".  नेपाली बेतिया -चम्पारन , बिहार के सुकवि थे।  राष्ट्रीय भावना , नारी प्रेम सौंदर्य ,प्रकृति सौंदर्य , भक्ति भावना  के वे गीतकार थे। नेपाली के काल के विविध पक्षों से सम्बंधित लेखों - निबंधों का संकलन-संग्रह -संपादन इसके सम्पादक ने किया है। नेपाली के जीवन और साहित्य का यह विस्तृत अध्ययन है। 









३. नेपाली की काव्य चेतना 
   प्रकाशन वर्ष : १९९२ 

इस ग्रन्थ में विविध रचनाकरों के निबंध, समीक्षा , संस्मरण  आदि संकलित हैं जिसके द्वारा नेपाली के काव्य की विशेषताओं का सामान्य तथा विशेष परिचय प्राप्त होता है।  यह पुस्तक  पठनीय  है। 






     

४. हिंदी का सतसई  एवं शतक  साहित्य 
    प्रकाशन वर्ष : 

संस्कृत तथा हिंदी काव्य परंपरा में संख्याश्रित मुक्तकाव्य की लम्बी परंपरा है , जिनमें शतक एवं सतसई का विशेष महत्व है।  इस पुस्तक में शताधिक सतसईयों  एवं असंख्य शतकों का परिचय, उनकी विशेषतायें वर्णित हैं। यह शोधकार्य सन्दर्भ ग्रन्थ के रूप में अति महत्वपूर्ण है। 
     













५. प्रसाद की गद्य भाषा का शास्त्रीय अध्ययन 
    प्रकाशन वर्ष : २०१४ 

पटना विश्वविद्यालय के कुलपति आचार्य  देवेन्द्र नाथ शर्मा के निर्देशन में पटना विश्वविद्यालय की पी. एच.डी  उपाधि के लिए स्वीकृत शोधप्रबंध का यह मूल रूप है। प्रसाद की गद्य भाषा के अंग उपांगों का अध्ययन - भाषा शास्त्र, व्याकरण शास्त्र, शैली शास्त्र के आधार पर किया गया है। इस ग्रन्थ में विविध शीर्षकों में प्रसाद की सम्पूर्ण गद्य रचनाओं का सर्वांगपूर्ण अध्ययन प्रस्तुत है।  




















प्रो (डॉ) बलराम मिश्र 
















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