पश्चिम चम्पारण के थारू आदिवासी भाई 2003 से अनुसूचित जनजाति में शामिल हो गए हैं। इसके लिए भी प्रयास अस्सी के दशक से चल रहा था । अस्सी के दशक से ही हम थारू आदिवासी के बीच थरूहट में जाने लगे थे। और फिर कुछ समय बाद थारूओं के गांव बखरी बाजार में उनकी झोंपड़ी में रहने लगे थे अपने शोध के क्रम में। और आस- पास के बीहड़ क्षेत्रों में, जंगल में पैदल ही जाया करते थे। उस समय यह क्षेत्र बुनियादी सुविधाओं के लिए भी संघर्ष कर रहा था। चाहे सड़क हो, या बिजली हो, या संचार का साधन हो, या बरसाती नदियों पर पुल हो, या स्वास्थ्य की सुविधा हो, या शिक्षा हो, या कानून व्यवस्था हो। उस समय तो यह क्षेत्र मिनी चंबल था, माओवादियों का अड्डा था। हत्या व किडनैपिंग रोजमर्रा की बातें थीं। कोई भी इस क्षेत्र में जाने से घबराता था, डरता था ।
उस समय से हमने थारू भाइयों विशेष तौर पर शंकर महतो तथा राम नाथ काजी जी को प्रेरित करना शुरू किया अनुसूचित जनजाति के लिए। मुझे यह बताने का मौका मिला कि नैनीताल के थारू बहुत पहले से ही अनुसूचित जनजाति में शामिल हैं फिर अपलोग क्यों नहीं? इसका असर ये हुआ कि ये लोग अपनी मांग लेकर बाहर जाने लगे। 1990 में शंकर महतो तथा राम नाथ काजी जी अपनी मांग को लेकर दिल्ली गए और केंद्र सरकार के संबंधित मंत्रियों और अधिकारियों को अपना ज्ञापन सौंपा था।और इस तरह से यह क्रम जारी रहा, और लोगों ने भी इस मिशन में सहयोग देना प्रारंभ किया और परिणाम हुआ कि 2003 में पश्चिम चम्पारण के थारू अनुसूचित जनजाति में शामिल हो गए।
जेएनयू से पीएचडी की उपाधि प्राप्त होने के बाद भी मैं पश्चिम चम्पारण के थरूहट आज भी जाता रहता हूं। यानी चार दशक से ज्यादा का यह रिश्ता है ।लगता है ये भूमिका भी ईश्वर ने मुझे ही प्रदान की है ताकि सीधे सादे थारू भाइयों का कल्याण हो सके ।
जब डिलिमिटेशन की प्रक्रिया चल रही थी तो मुझे अपने ब्लॉग तथा यूट्यूब के माध्यम से ये बात रखने का अवसर मिला कि थरूहट में थारू आदिवासियों के लिए एम पी, एम एल ए सीट (MP/MLA)आरक्षित होनी चाहिए और इस तरह से जो दशकों से उन्हें अनुसूचित जनजाति का दर्जा न देकर उनके साथ जो घोर अन्याय हुआ उसकी भरपाई एम पी, एम एल ए सीट आरक्षित कर किया जा सकता है। इससे थारू भाइयों की आवाज विधानसभा तथा लोकसभा तक पहुंचेगी।
अपने ब्लॉग में मैंने ये मुद्दा 15 दिसंबर 2013 को तो उठाया ही था,अपने यूट्यूब चैनल पर 14 सितंबर 2020 को भी उठाया था । वैसे चर्चा तो मैं पहले से ही करता आया हूं। और अब ये मुद्दा फेसबुक के माध्यम से भी उठा रहा हूं ताकि संबंधित मंत्रियों व अधिकारियों तक मेरी बात पहुंचे और पश्चिम चम्पारण के थारू अनुसूचित जनजाति भाइयों को अपनी बात सीधे तौर पर विधानसभा एवं लोकसभा में रखने का अवसर प्राप्त हो। बिहार के विभाजन के उपरान्त पश्चिम चम्पारण की थारू जनजाति अब बिहार की मुख्य अनुसूचित जनजाति हो गई है ।
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