थारू जनजाति पर तीन पुस्तकें थारू जनजाति के आई आई टी दिल्ली के प्रोफेसर को भेंट
मुझे थारु भाइयों से मिलना, उनसे बातें करना, उनकी बातें सुनना बहुत ही अच्छा लगता है। लगता है किसी बिलकुल अपने से मिल रहा हूं जिससे जन्म जन्म का रिश्ता हो। इस अद्भुत व विशेष संबंध को मैं परिभाषित नहीं कर सकता, शब्दों में अभिव्यक्त भी नहीं कर सकता। बस अनुभव करता हूं।
मेरे ब्लॉग पर थारुओं के बारे में जानकारी और सूचना पाकर वे इतने उत्साहित थे कि उन्होंने मुझे मेल किया नेदरलैंड से 8 अगस्त 2012 को, और कहा कि जितनी जानकारी आप पश्चिम चम्पारण के थारुओं के बारे में रखते हैं उतनी जानकारी तो मुझे भी नहीं है। बस उसी साल से हम एक दूसरे के सम्पर्क में आए।
पर पहली बार मिलना हुआ 2023 में और 29 जून 2025 को दूसरी बार। मैंने ही उनको फोन किया और कहा कि मैं मिलना चाहता हूं आपसे और पश्चिम चम्पारण के थारु आदिवासी से संबंधित अपनी तीन पुस्तकें आपको भेंट करना चाहता हूं। उनको कल एक पेपर प्रेजेंट करना है फिर भी उन्होंने मिलने से मुझे मना नहीं किया। शाम को पांच और छह बजे के बीच का समय तय हुआ। उस समय बारिश हो रही थी फिर भी मैं बस से निकल गया उनसे मिलने। तय समय पर तय जगह पर । वो भी मेरी प्रतीक्षा कर रहे थे, बारिश हो रही थी मेरा शरीर भींग रहा था, साथ ही भावुकता में मेरे नयन भी अश्रु से।
मुलाकात हुई, बात भी हुई, विचारों का आदान-प्रदान भी हुआ, साथ ही अपनी भावनाओं का भी। मैने अपनी तीन पुस्तकें उनको भेंट कीं । वे अति प्रसन्न हुए। कहा कि पुस्तक छपवाने में आपका काफी पैसा खर्च हुआ होगा, मैं पेमेंट कर देता हूं। पर मैंने विनम्रतापूर्वक अस्वीकार कर दिया।
अरे मैंने तो आपको परिचय ही नहीं कराया इस व्यक्तित्व से। आइए आपको बताते हैं इनके बारे में। इनका नाम है डाॅ. जितेन्द्र प्रसाद खतइत । ये आई आई टी दिल्ली में एसोसिएट प्रोफेसर हैं मेकानिकल इंजीनियरिंग में । नेदरलैंड से इन्होंने पीएचडी की उपाधि प्राप्त की है और बहुत अच्छे कलाकार भी है क्योंकि बहुत अच्छी पेंटिंग करते हैं । ये संभवतः पश्चिम चम्पारण की थारु जनजाति से इंजीनियरिंग में पहले डाक्ट्रेट हैं।