राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के 100 गौरवशाली वर्ष
प्रस्तावना
भारत की सांस्कृतिक चेतना और राष्ट्र जीवन को एकजुट करने के उद्देश्य से 27 सितम्बर 1925 को नागपुर में डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की स्थापना की। संघ का स्वरूप कोई राजनीतिक संगठन नहीं था, बल्कि यह समाजजीवन को संगठित करने का प्रयास था। शताब्दी की इस यात्रा में संघ ने केवल शाखा और स्वयंसेवकों का विस्तार नहीं किया, बल्कि राष्ट्रजीवन के प्रत्येक क्षेत्र में गहरा प्रभाव डाला। शिक्षा, संस्कृति, सेवा, राजनीति, समाज सुधार, समरसता, ग्रामोदय, विज्ञान और पर्यावरण - इन सभी क्षेत्रों में RSS ने संगठन शक्ति का परिचय कराया।
आज संघ 60,000 से अधिक शाखाओं और करोड़ों स्वयंसेवकों के साथ भारत ही नहीं, बल्कि विश्वभर में भारतीय संस्कृति का संवाहक बन चुका है। 100 वर्षों की यात्रा किसी एक संगठन की कहानी नहीं, बल्कि भारत के सांस्कृतिक पुनर्जागरण की महागाथा है।
स्थापना और प्रारंभिक कार्य (1925-1947)
संघ की स्थापना के समय भारत स्वतंत्रता संग्राम की आग में जल रहा था। डॉ. हेडगेवार स्वयं कांग्रेस के कार्यकर्ता रह चुके थे और ‘भारत माता की पूर्ण स्वतंत्रता’ उनका अंतिम लक्ष्य था। उन्होंने अनुभव किया कि भारत को केवल राजनीतिक स्वतंत्रता नहीं, बल्कि सामाजिक संगठन और सांस्कृतिक आत्मविश्वास की आवश्यकता है।
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शाखा प्रणाली : प्रतिदिन शाखाओं में शारीरिक शिक्षा, अनुशासन, देशभक्ति के गीत और बौद्धिक चर्चा द्वारा स्वयंसेवकों को गढ़ा जाता।
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राष्ट्रीय दृष्टि का निर्माण : संघ ने जाति, पंथ, भाषा और प्रांत की संकीर्णताओं से ऊपर उठकर ‘हम सब हिंदू हैं’ का भाव जगाया।
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स्वतंत्रता आंदोलन में योगदान : यद्यपि संघ ने सीधी राजनीतिक भागीदारी नहीं की, फिर भी अनेक स्वयंसेवक भूमिगत क्रांतिकारी गतिविधियों, सत्याग्रहों और आंदोलन में सम्मिलित हुए।
1947 में भारत स्वतंत्र हुआ, परंतु विभाजन की त्रासदी ने राष्ट्र को गहरे घाव दिए। उस कठिन समय में RSS स्वयंसेवकों ने शरणार्थियों की सेवा कर असाधारण उदाहरण प्रस्तुत किया।
स्वतंत्र भारत में RSS (1947-1975)
स्वतंत्रता के बाद संघ का ध्यान समाज निर्माण पर केंद्रित हुआ।
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शिक्षा और संस्कृति : संस्कृत शिक्षा, बाल संस्कार, विद्यालय और शिक्षण संस्थाओं की नींव रखी गई।
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समाज संगठन : 1951 में श्यामा प्रसाद मुखर्जी के नेतृत्व में भारतीय जनसंघ की स्थापना हुई, जिसमें संघ के अनेक स्वयंसेवक जुड़े।
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समाज-सेवा कार्य : संघ ने सेवा भारती जैसी संस्थाएँ खड़ी कीं, जो गरीब, दलित और वंचित वर्गों के लिए समर्पित रहीं।
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आपातकाल (1975-77) : इस कालखंड में संघ पर प्रतिबंध लगा। लाखों स्वयंसेवक जेल गए। लोकतंत्र रक्षा आंदोलन में संघ की भूमिका निर्णायक रही।
संगठन, सेवा और सांस्कृतिक जागरण (1975-2000)
इस चरण में संघ ने राष्ट्रव्यापी विस्तार किया।
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वनवासी और ग्रामीण कार्य : वनवासी कल्याण आश्रम, एकल विद्यालयों की शुरुआत, गरीब और पिछड़े क्षेत्रों में शिक्षा व स्वास्थ्य की सेवा।
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महिला जागरण : राष्ट्र सेविका समिति और अन्य मंचों के माध्यम से महिलाओं को संगठन में नेतृत्व का अवसर मिला।
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राम जन्मभूमि आंदोलन : 1980-90 के दशक में संघ, विहिप और संबंधित संगठनों के नेतृत्व में श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन ने राष्ट्रीय चेतना को नई दिशा दी।
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अंतरराष्ट्रीय विस्तार : विश्व हिंदू परिषद, हिंदू स्वयंसेवक संघ और प्रवासी भारतीय संगठनों के माध्यम से संघ की विचारधारा वैश्विक हुई।
वैश्विक RSS और शताब्दी का संकल्प (2000-2025)
21वीं सदी में RSS ने समाज जीवन के नये क्षेत्रों में सक्रिय भूमिका निभाई।
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शाखाओं का विस्तार : भारत के लगभग हर गाँव और कस्बे में शाखाएँ स्थापित हुईं। विदेशों में भी हिंदू स्वयंसेवक संघ (HSS) सक्रिय हुआ।
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नये विषय : पर्यावरण संरक्षण, जल संरक्षण, ग्रामोदय, स्वदेशी उत्पादन, समरसता, और विज्ञान-प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में कार्य।
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कोरोना काल की सेवाएँ : लाखों स्वयंसेवकों ने देशभर में भोजन वितरण, स्वास्थ्य सहायता और प्रवासी श्रमिकों की मदद की।
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वैश्विक परिप्रेक्ष्य : आज संघ भारतीय संस्कृति को विश्वमंच पर आत्मविश्वास के साथ प्रस्तुत कर रहा है।
2025 के शताब्दी वर्ष में संघ का संकल्प है - “विकसित भारत का निर्माण और विश्वशांति की स्थापना।”
निष्कर्ष
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की 100 वर्षों की यात्रा यह सिद्ध करती है कि संगठन ही राष्ट्र की शक्ति है। एक छोटे से बीज से वृक्ष की भांति विकसित होकर RSS आज भारतीय समाज की आत्मा बन चुका है। उसने जाति-पंथ से ऊपर उठकर ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ का स्वप्न साकार किया है।
संघ की शताब्दी केवल एक संगठन का उत्सव नहीं, बल्कि यह भारतीय सांस्कृतिक पुनर्जागरण का महाकुंभ है। यह इतिहास आने वाली पीढ़ियों को यह सिखाता है कि अनुशासन, सेवा और संगठन ही राष्ट्र की रीढ़ हैं।
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